अपना चेहरा ना बदल सका
एक नुर था उसकी आखोमे
वो कूछ कहना चाहती थी
मे पढ नही पाया उनकी आखे
खामोश दीवारें सरे आम थी
खूद को अकेला पाया जब अपने ही महौलै मे
सूनसान हो गया सब, कयू वोट गले सब अपने घर मे
नीकल चूका हू अपने आप से ढूँढने जहा मे सबको
अगर मील जा ये रहमत से ईनसानयीत मूजे
नही चाहीये मूजे बाट दूंगा आप सबको
हर तरफ धमॅ और जाति की आवाज थी
तो कही पे खूरशीयो की खिचतान थी
सड़क पर पड़ी गरीब की थाली खाली थी
अब कहा बची कोई मधर टेरेसा थी
हूँकार सबको अपने आपकी लगी पड़ी थी
तो कही पे अपने ही घर मे मारा मारी थी
आग बुरी तरह से लगी पड़ी थी
अब कहा बादलो से बरसात की आस थी
कूछ सपने देखे थे उसकी आखो मे
पर अब न बची कोई आस थी
कुछ अपने भी जिंदा थे मेरे
पर अब कहा सांसो की गूंझारीश थी
फूरसत कहा मीली उसके आँसू पौछने की
एक कोने मे आस धराये बेठी वो मेरी मा थी
जम गया हे शौक का हिमालय अब
और गम का सागर फेला हे अब
वचन दिया था अपनी मा को ढूढकर ही लाउंगा इंसानियत
पर अब तो पहन लीया मूखौटा बइमानी का
और अब कहा बची कोई सहनशीलता थी
तूट गया जब सपना उसका
अब छूट गया हूं अपने आप से
कयोकी अपना चेहरा न बदल सका
आखिर एक आंस हे इस जहाँ से
- रवि
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